मन के - मनके
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Sunday, 18 May 2014
स्मृतियों के भोजपत्रों पर----मातृत्व के फूल
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प्रिय राजीव, इतने वर्ष मुट्ठी से यूं सरक गये कि मुट्ठी को देखने का साहस नहीं हुआ, सोचती हूं ,इतना लंबा वक्त रेत की नाईं कहां सरक...
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