मन के - मनके
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----जब दृष्टा ही दृश्य बन जाता है
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Saturday, 28 February 2015
दो हाथ फैले हुए---और मैं बंधती चली गयी
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बहती चली गयी, वक्त की धारा की धार में वर्षों की मिठास-खटास-कडुवाहटों की लहरें और स्मृतियों की तलहटी में पडे— अपनत्व के पाषाड-सीप...
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