कोयल की—कूह-कूह
मोर का सतरंगी
आंचल
हवा के,झोकों में,झूमती डालियां
गिलहरियों की—बेवजह,भाग-दौड
ठंडे पानी के,
छींटे देते
परवज़ों के
पंख----
आम की डाली से-----
मोती से लटकते,अधपके आम
मेंहदी से
फूटती,बौराई महक
पीपल के पत्तों
की सरसराहटें
पेडों के झुरमुट से---
आती,सीटियां—झींगुरों की
कभी,बन,उमस का
ताप,तू
तो, पसीने को
सोखती,ठंडी बयार
बडी सी,बूंद बन,टपकी कभी
सौगात तेरी,बुझाती,धरती की प्यास
कभी,इंतजार
बन,आमों के पकने का तू
तो कभी,पतझड की
बिछ गई,आंगन में,बिसात
आज,निकली थी,बंद कमरे से
बहुत दिनों के बाद मैं---
तू,कहीं,खो गया था,
या,भूल मैं ही गई थी
पर,जब, ढूंढा तुझे,तो
हर- तरफ,तू, बिखरा
पडा था----