तुम,आखरी रात,गुज़ारोगी
आज,मेरे सहन में---
जब,पहले दिन,ड्योढी पर,मेरे
पडे थे,महावरी,तुम्हारे कदम
तुमने,धान से भरे कलश को
सिंदूरी अंगूठे से उढकाया था,यूं
जैसे कि,ब्याह कर लाया था
वक्त,रख कर सेहरा-झूमरी
भाल पर,आशाओं का लगाए तिलक
ओंठो पर,छोटी सी,मुस्कान लिए
तुम,आखरी रात,गुज़ारोगी
आज,मेरे सहन में----
तुम,ड्योढी पर, खडी थीं,पलकों को झुकाए
आंखो मे,मोती की लडियां लिए—
मैंने भी,बांहो में भर,तुमको अपने---
दो कदम,साथ लेकर तुम्हे,सहन तक,आई थी,मैं
चाबियों के गुछ्छे को,अपने आंचल से,खोल
मेंहदी से महकती हथेलियों पर रख,चूमा था तु्म्हे
क्योंकि,वक्त का तकाज़ा था,यही---
चूंकि, मेरे भविष्य की,धाती थीं तुम
तुम,आखरी रात,गुजारोगी
आज,मेरे सहन में---
तुमने भी,उन चाबियों के गुछ्छे को
रखा था,बांधे,जतन से बडे------
सहेजे(वक्त के)खज़ाने को नज़रों तले
कुछ खनकते सिक्कों को भी,तुमने जोडा भी था
तुम,आखरी रात,गुज़ारोगी
आज,मेरे सहन में----
बहुत कुछ और भी सहेजा था,वक्त से,तुमने
परंतु,कुछ खोना भी था.तकाज़ा वक्त का
कुछ आंसुऒं को,पीना भी था,सब्र से---
कुछ आहों को भी,सांसों में,जीना भी था ज़रूरी
कुछ मिलन के,उत्सव भी लाईं थी,समेटे
आंगन में,मेरे,ढोलक की थापों पर सहेजे
तो,कुछ विछोह की पीडा को भी----
दे जाना था,तुम्हें,यह भी था तकाज़ा वक्त का
तुम,आखरी रात,गुजारोगी
आज,मेरे सहन में----
मन के--मनके