मन के - मनके

Monday, 30 May 2016

ये आंसू मेरे—दिल की किताब है—

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एक पोस्ट—पापा मुझे स्टेशन छोडने आया ना करो— और, पापा का चेहरा—एक किताब बन गया— जिसे पढ पायी एक बेटी—नजर बडी तीखी थी— समझ बडी पैन...
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Wednesday, 6 April 2016

कली-कली ही चुनती रहती हूं

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कली-कली ही चुनती रहती हूं कांटों की बाडें हैं—बे-शक उम्मीदों की डालों पर फूलों की झालर-महकेगीं- मौसम को अभी पलटना है बाकी पी...
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Monday, 14 March 2016

Kanhaiya—not an individual—An turning point.

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Kanhaiya—not an individual—An turning point. Is the suspected- investigation of the Cancer. Now already has been confirmed into the ...
Sunday, 13 March 2016

घर एक रहनुमा की टंगी कमीज भी होता है

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                       घर क्या होता है? एक घर है—जिसे घर की तरह हर-रोज बु्हारती रहती हूं,मैं पर मेरे ही पैरों में लगी धूल...
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मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
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