मन के - मनके
Friday, 1 May 2015
बहुत सुंदर समीर जी.
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हर शब्द में---एक प्रश्न,हर प्रश्न में एक छटपटाहट, हर छटपटाहट में---एक-एक सांस की चाहत---कि,बस जी लूं---जी लूं---बस. इसी संदर्भ ...
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Friday, 24 April 2015
जीवन और सार
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मैने सुना है—स्वर्ग के एक रेस्त्रां में एक छोटी सी घटना घट गई. उस रेस्त्रां में तीन अदभुत लोग एक टेबल के चारों ओर बैठे हुए थे—गोतम ब...
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Tuesday, 21 April 2015
यह जीवन बार-बार महाभारत का क्षेत्र सा,
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यह जीवन बार-बार महाभारत का क्षेत्र सा, यह प्रश्न-- शास्वत-निरंतर ढो रहा,मानव निरंतर निरीह-सर्वहारा-अर्जुन—हथेलियों पर थामे—प्रारब...
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Wednesday, 8 April 2015
मैंने तुम्हें--- अब,पत्र लिखना छोड दिया है.
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बहुत भाव थे,मन में मन में बडी चाह थी कि, कुछ अपनी सी लिख पाती में,जीवन की मैं...
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