मन के - मनके

Saturday, 28 February 2015

दो हाथ फैले हुए---और मैं बंधती चली गयी

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बहती चली गयी, वक्त की धारा की धार में वर्षों की मिठास-खटास-कडुवाहटों की लहरें और स्मृतियों की तलहटी में पडे— अपनत्व के पाषाड-सीप...
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Wednesday, 25 February 2015

सुख का सूरज---

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आइये जीवन की शुरूआत करें---नित-नये सूरज से. परंपरागत शुभ-आरम्भ ईश-वंदना से ही होनी चाहिये सो लेखक-कवि श्री शास्त्री जी इस परम्परा का न...
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Friday, 20 February 2015

जो भी व्यक्ति----

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जो भी व्यक्ति---- १.जो भी व्यक्ति प्रसिद्धि और सफलता के नशे से मुक्त होकर साधारण लोगों की भीड में खो जाता है वही व्यक्ति सभी की दृष्ट...
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Thursday, 12 February 2015

मनुष्य के प्राण आतुर हैं---

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अमेरिका के मनोवैग्यानिकों ने हिसाब लगाया है कि न्यूयार्क जैसे नगर में केवल १८% लोग स्वस्थ कहे जा सकते हैं ( यह आंकडा उस समय का जब ओशो द्व...
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Thursday, 5 February 2015

नव-निर्माण अब होने को है.

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पथ के शूल-फूल                मौसम बदल रहा है---गर्मी की तपस धीरे-धीरे शांत होने लगी है,जैसे तपती आंच---ताप से ठंडी पडने   लगती है---...
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मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
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