मन के - मनके

Wednesday, 22 October 2014

कुछ नुक्ते कुछ दाने चीनी के---

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              1.ये छोटी-छोटी बातें हैं                 जैसे धूप मुडेरों की                 अब आयी---अब जाती है                 ज...
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Monday, 20 October 2014

नुक्ता-चीनी—

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पता नहीं इस शब्द का वास्तिविक अर्थ क्या है—निःसंदेह बोलने में मधुर लगता है,जैसे रुन-झुन,झन-झन--- खैर---जाने दें इन छोटी-छोटी बातों ...
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Saturday, 11 October 2014

एक अहसास—मां होने का

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संसार की अनेक भाषाओं में,मां का संबोधन,करीब-करीब एक सा ही सुनाई देता है—मां,मातृ,मदर,अम्मा--- कितना नैसर्गिक सम्बोधन है,जब बच्चा ज...
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Wednesday, 1 October 2014

मेरी नन्हीं---परी

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                    दूर क्षितिज सी क्यॊं हो जाती हो                   दो तटों की दूरी है---मीलों सी                   फैलाऊं ब...
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मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
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