मन के - मनके

Tuesday, 13 May 2014

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ओशो---स्वंम एक अभिव्यक्ति हैं---जो उनके विचार-उवाच के माध्यम से,भागीरथी सी फूटती है और मनस की धरती तृप्त हो, मुक्ति की महक से सरोबार ह...
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Saturday, 26 April 2014

An humble letter to my brother---

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My elder brother whom , I always consider my soul-support and always seek his words,whenever I had been in need.Always my regards an...
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Tuesday, 22 April 2014

एक घर---और,उसमें गुम हुई एक परछाई----

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हमारी यादों की दुनिया,मन-मस्तिष्क में,सदैव गुलजार रहती है. मेरे ख्याल से,हम अपनी जिंदगी का बहुत बडा भाग,अपनी यादों की दुनिया में जी...
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Tuesday, 15 April 2014

कल---एक घर देखा

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कल---एक घर देखा                    पत्थरों की दीवारों में                    शीशों की खिडकियां                    खिडकियों के...
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मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
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