मन के - मनके

Saturday, 17 November 2012

रोज़गार---दुनियादारी का यूं ही चलता रहेगा (१७.११.२०१२)

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रोज़गार---दुनियादारी का यूं ही चलता रहेगा (१७.११.२०१२) प्रिय संजीव,     पिछले,करीब दो माह से,मेरी लेखनी व मेरे विचारों के मध्य तार...
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Friday, 2 November 2012

आएं---- संसार को और खूबसूरत बनाएं

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१.      दयालुता—एक महक है,जो फैलेगी ही. आएं, इस महक को फैलने दें. २.      जाने से पहले—संसार को बेहतर छोड कर जाना चाहते हैं--- तो दूस...
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Monday, 22 October 2012

कुछ यूं ही-----

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                      मैं,                             झंझावतों के----                                     पास से गुजरी,       ...
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Tuesday, 25 September 2012

मैं, मौन हूं----

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क्योंकि, यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है जो, मुझसे कोई छीन नहीं सकता है—                                मुझसे मेरा घर छीना जा सकता है ...
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Tuesday, 18 September 2012

मुझे अब पीडाओं के बोझ की दरकार नहीं है----

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क्योंकि, मेरे वज़ूद की दीवारें---         अब कुछ, झुकने लगी हैं--- और, उनके कोने में रखे---                  पुराने गुलदानों को,...
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मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
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