ओशो यूं कहते हैं---
मैंने सु्ना है कि अमेरिका में एक लेख लिखा हुआ
था------मजाक का कोई लेख था,उसमें लिखा था कि हर आदमी और हर जाति का लक्षण शराब
पिला कर पता लगाया जा सकता है कि उसका बेसिक करेक्टर क्या है?
अगर दच आदमी को शराब पिला दी जाय तो वह एक दम से खाने पर
टूट पडेगा.
अगर फ्रेंच आदमी को शराब पिला दी जाय तो शराब पीने के बाद
वह एकदम नाचने-गाने लगेगा.
यदि अंग्रेज को शराब पिला दी जाय तो वह एक कोने में एकदम से
शांत होकर बैठ जायेगा.
ऐसे सारे दुनिया के लोगों के लक्षण थे.लेकिन भूल से भारत के
लोगों के लक्षणों के विषय में कोई चर्चा नहीं थी.तो किसी मित्र ने मुझसे कहा कि आप
इस विषय पर कुछ कहने की कृपा करें.
तो मैंने कहा---जग-जाहिर,भारतीय शराब पियेगा और तत्काल
उपदेश देने लगेगा,यह उसका जातीय गुण है,करेक्टरिस्टिक है.
यह जो---उपदेशकों का समाज है---ये रोग के लक्षण हैं,अनीति
के लक्षण हैं.
और इस रोग को बढाने के सुगम उपाय है,वह यह कि जीवन में
सर्वागींण ग्यान उत्पन्न ना हो सके. और जीवन के जो सबसे ज्यादा गहरे केंद्र हैं जिनके
अग्यान के कारण,अनीति,व्यभिचार और भ्रष्टाचार फैलता है उन केंद्रों को आदमी कभी भी
ना जान सके,क्योंकि उन केंद्रों को जान कर मनुष्य तुरंत आनीति,व्यभचार व
भ्रष्टाचार से तुरंत दूर हो जाता है.
चूंकि मैं उस मूल-केंद्र की बात करता हूं अतः कुछ तथाकथित
संतो ने कहा कि हमारे मन में आपके प्रति कोई आदर नहीं है.
मैंने उनसे कहा इसमें कोई गलती नहीं---मैंरे प्रति आदर होने
की जरूरत ही क्या है?
मैं महात्मा था नहीं,मैं महात्मा नहीं हूं,मैं महात्मा होना
नहीं चाहता.
महान मनुष्य मै चाहता हूं—
महान मनुष्यता मै चाहता हूं—
साभार---संभोग से समाधि की ओर.